भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 3

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 9 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=व…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


(25)

जयत्यंजनी-गर्भ-अंभोति-संभूत विधु विबुध- कुल-कैरवानंद कारी।
केसरी-चारू-लोचन चकोरक-सुखद, लोक-शोक-संतापहारी।1।
जयति जय बालकपि केलि-कैतुक उदित-चंडकर-मंडल -ग्रासकर्ता।
राहु-रवि- शक्र- पवि- गर्व-खर्वीकरण शरण-भंयहरण जय भुवन-भर्ता।2।
जयति रणधीर, रघुवीरहित, देवमणि, रूद्र-अवतार, संसार-पाता। विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपुष, विमलगुण, बुद्धि-वारिधि-विधाता।3।
जयति सुग्रीव-ऋक्षादि-रक्षण-निपुण, बालि-बलशालि-बध -मुख्यहेतू।
जलधि लंधन सिंह सिंहिका-मद-मथन, रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू।4।
जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन विपिन-दलन घननादवश विगतशंका।
लूमलीलाऽनल-ज्वालमाला कुलित होलिका करण लंकेश-लंका।5।
जयति सौमित्र-रघुनंदनानंदकर, ऋक्ष-कपि-कटक-संघट -विधायी।
बद्ध-वारिधि-सेतु अमर -मंगल-हेतु, भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी।6।
जयति जय वज्रतनु दशन नख मुख विकट, चंड-भुजदंड तरू-शैल-पानी।
समर-तैलिक-यंत्र तिल-तमीचर-निकर, पेरिडारे सुभट घालि घानी।7।
जयति दशकंठ घटकर्ण-वारिधि-नाद-कदन-कारन, कालनेमि-हंता।
अघटघटना-सुघट सुघट-विघटन विकट, भूमि-पाताल -जल-गगन-गंता।8।
जयति विश्व- विख्यात बानैत-विरूदावली, विदुष बरनत वेद विमल बानी।
दास तुलसी त्रास शमन सीतारमण संग शोभित राम-राजधानी।9।

(30)

जके गति है हनुमान की।
ताकी पैज पुजि आई, यह रेखा कुलिस पषानकी।1।
अघटित-घटन, सुघट-बिघटन, ऐसी बिरूदावलि नहिं आनकी।
सुमिरत संकट-सोच-बिमोचन, मूरति मोद-निधानकी।2।
तापर सानुकूल गिरिजा, हर, लषन, राम अरू जानकी।
तुलसी कपिकी कृपा-बिलोकनि, खानि सकल कल्यानकी।3।

(31)
जय ताकिहै तमकि ताकी ओर को।
जाको है सब भांति भरोसो कपि केसरी-किसोरको।।
जन-रंजन अरिगन-गंजन मुख-भंजन खल बरजोरको।
बेद- पुरान-प्रगट पुरूषाराि सकल-सुभट -सिरमोर केा।।
उथपे-थपन, थपे उथपन पन, बिबुधबृंद बँदिछोर को।
जलधि लाँधि दहि लंे प्रबल बल दलन निसाचर घोर को।।
जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिाकर भोरको।
जाकी चिबुक-चोट चूरन किय रद-मद कुलिस कठोरको।।
लोकपाल अनुकूल बिलोकिवो चहत बिलोचन-कोरको।
सदा अभय, जय, मुद-मंगलमय जो सेवक रनरोर को।।
भगत-कामतरू नाम राम परिपूरन चंद चकोरको।
तुलसी फल चारों करतल जस गावत गईबहोरको।।

(32)
ऐसी तोहि न बूझिये हनुमान हठीले।
साहेब कहूँ न रामसे, तोसे न उसीले।।
तेरे देखत सिंहके सिसु मेंढक लीले।
जानक हौं कलि तेरेऊ मन गुनगन कीले।।
हाँक सुनत दसकंधके भये बंधन ढीले।
सो बल गयो किधौं भये अब गरबगहीले।।
सेवकको परदा फटे तू समरथ सीले।
अधिक आपुते आपुनो सुनि मान सही ले।।
साँसति तुलसिदासकी सुनि सुजस तुही ले।
तिहूँकाल तिनको भलौ जे राम-रँगीले।।


(37)
लाल लाड़िले लखन, हित हौ जनके।
सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी,
पालक कृपालु अपने पनके।1।
धरनी-धरनहार भंजन-भुवनभार,
अवतार साहसी सहसफनके।।
सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत,
निरमल करम बचन अरू मनके।2।
रूपके निधान, धनु-बान पानि,
तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके।।
सेवक-सुख-दायक, सबल, सब लायक,
गायक जानकीनाथ गुनगनके।3।
भावते भरतके, सुमित्रा-सीताके दुलारे,
चातक चतुर राम स्याम घनके।।
बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस,
धनी धन तुलसीसे निरधनके।4।

(38)
जयति
लक्ष्मणानंत भगवंत भुधर,
भुजग- राज, भुवनेश, भुभारहारी।
प्रलय-पावक-महाज्वालमाला-वमन, शमन-संताप लीलावतारी।1। ज
यति दाशरथि, समर ,समरथ, सुमि़त्रा-सुवनत्यंजनी-गर्भ-अंभोति
 
(39)
जयति
भूमिजा-रमण-पदकंज-मकरंद-रस-
रिसक-मधुकर भरत भूरिभागी।
भुवन-भूषण, भानुवंश-भूषण, भूमिपाल-
मणि रामचंद्रानुरागागी।1।
जयति विबुधेश-धनदादि-दुर्लभ-महा-
राज संम्रा-सुख-पद-विरागी।
खड्ग-धाराव्रती-प्रथमरेखा प्रकट
शुद्धमति- युवति पति-प्रेमपागी।2।
जयति निरूपाधि-भक्तिभाव-यंत्रित-हृदय,
बंधु-हित चित्रकूटाद्रि-चारी।
पादुका-नृप-सचिव, पुहुमि-पालक परम
धरम-धुर-धीर, वरवीर भारी।3।
जयति संजीवनी-समय-संकट हनूमान
धनुबान-महिमा बखानी।
बाहुबल बिपुल परमिति पराक्रम अतुल,
गूढ़ गति जानकी-जानि जानी।4।
जयति रण-अजिर गन्धर्व-गण-गर्वहर,
फिर किये रामगुणगाथ-गाता।
माण्डवी-चित्त-चातक-नवांबुद-बरन,
सरन तुलसीदास अभय दाता।5।