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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 14

पद 131 से 140 तक

(131)

पावन प्रेम राम-चरन-कमल जनम लाहु परम।

रामनाम लेत होत, सुलभ सकल धरम।

जोग, मख, बिबेक, बिरत , बेद-बिदित करम।

करिबै कहँ कटु कठोर, सुनत मधुर, नरम।

तुलसी सुनि, जानि-बूझि, भूलहि जानि भरम।

तेहि प्रभुको होहि, जाहि सब ही की सरम।।