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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 23

पद 221 से 230 तक

(225)

भरोसो और आइहै उर ताके।

कै कहुँ लहै जो रामहि-सो साहिब, कै अपनो बल जाके।।

कै कलिकाल कराल न सूझत, मोह-मार-मद छाके।

कै सुनि स्वामि-सुभाउ न रह्यो चित जो हित सब अंग थाके।।

हौं जानत भलिभाँति अपनपो, प्रभु-सो सुन्यो न साके।

उपल, भील,खग, मृग, रजनीचर, भले भये करतब काके।।

मोको भलो राम-नाम सुरतरू-सो रामप्रसाद कृपालु कृपाके।

तुलसी सुखी निसोच राज ज्यों बालक माय-बबाके।।