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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 42

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दोहा संख्या 411 से 420


बचन बिचार अचार तन मन करतब छल छूति।
तुलसी क्यांे सुख पाइये अंतरजामिहि धूति।411।


सारदूल को स्वाँग करि कूकर की करतूति ।
तुलसी तापर चाहिऐ कीरति बिजय बिभूति।412।


बड़े पाप बाढे़ं किए छोटे किए लजात।
 तुलसी ता पर सुख चहत बिधि सों बहुत रिसात।413।


देस काल करता करम बचन बिचार बिहीन।
ते सुरतरू तर दारिदी सुरसरि तीर मलीन।।414।


 साहस हीं कै कोप बस किएँ कठिन परिपाक।
सठ संकट भाजन भए हठि कुजाति कपि काक।415।


राज करत बिनु काजहीं करहिं कुचालि कुसाजि।
तुलसी ते दसकंध ज्यों जइहैं सहित समाज।416।


राज करत बिनु काजहीं ठजहिं जे कूर कुठाट।
तुलसी ते कुरूराज ज्यों जइहैं बारह बाट।417।


सभा सुयोधन की सकुनि सुमति सराहन जोग।
द्रोन बिदुर भीषम हरिहि कहहिं प्रपंची लोग।418।


 पांडु सुअन की सदसि ते नीको रिपु हित जानि।
हरि हर सम सब मानिअत मोह ग्यान की बानि।।419 ।


हित पर बढइ बिरोध जब अनहित पर अनुराग।
राम बिमुख बिधि बाम गति सगुन अघाइ अभाग।420।