भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदिया का घना-घना कूल है / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 20 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदिया का घना-घना कूल है
वंशी से बेधो मत प्यारे
यह मन तो बिंधा हुआ फूल है
नदिया का घना-घना कूल है

थिर है नदिया का जल जामुनी
तिरती रे छाया मनभावनी
याद नहीं आती क्या चांदनी!

पिछला जीवन क्या फिजूल है ?
नदिया का घना-घना कूल है

मैं आई जल भर हूँ आनने
या नहीं की सुख के दिन मांगने
जो जाता बीते फल थामने

करता वह बहुत बड़ी भूल है
नदिया का घना-घना कूल है