भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलो, चलें चम्पागढ़ / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 20 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलो, चलें चम्पागढ़--सपनों के देश
प्यारे के देश

उत्तर से आ रही हवाएँ
बूँदों की झालर पहने
दक्षिण में उठ-उठकर छा रहे
पागल बादल गहिरे!

बिजली के बजते संदेश
प्यारे के देश

दस दिन के पाँव और दस दिन की नाव
दूर देश रे
तब जाकर मिल पाएगा पिय का गाँव
दूर देश रे
ऎसा विधना का आदेश

प्यारे के देश
चलो, चलें चम्पागढ़--सपनों के देश