भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाप-माँ से मुझे छीन लोगे / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:39, 20 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाप-माँ से मुझे छीन लोगे
क्या मुझे प्यार उतना ही दोगे ?

तुम भरोसा करो प्राण मेरा
प्यार मेरा कि है प्यार मेरा

मैं तुम्हें प्यार दूंगा अनोखा
है न पाया किसी ने, न देखा

तुम मेरी, हम तुम्हारे ही होंगे
'तीरी-पुरुष दुलाड़ तीरे-जूगे'