भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं बहरहाल बुत बना सा था / अमित
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:20, 20 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’ }} {{KKCatGhazal}} <poem> मैं बहरहाल ब…)
मैं बहरहाल बुत बना सा था
वो भी मग़रूर और तना सा था
कुछ शरायत दरख़्त ने रख दीं
वरना साया बहुत घना सा था
साक़िये-कमनिगाह से अर्ज़ी
जैसे पत्थर को पूजना सा था
ख़ूब दमसाज़ थी ख़ुशबू लेकिन
साँस लेना वहाँ मना सा था
दर्द से यूँ तो नया नहीं था 'अमित'
अज़नबी अबके आश्ना सा था
शब्दार्थ:
शरायत = शर्त का बहुवचन, साक़िये-कमनिगाह = पक्षपात करने वाला साक़ी, दमसाज़ = प्राणदायक,
तअर्रुफ़ = परिचय, आश्ना = परिचित