भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पार्वती-मंगल / तुलसीदास / पृष्ठ 5

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

।।श्रीहरि।।
    
( पार्वती-मंगल पृष्ठ 5)


फिरेउ मातु पितु परिजन लखि गिरिजा पन।
जेहिं अनुरागु लागु चितु सोइ हितु आपन।33।

 तजेउ भोग जिमि रोग लोग अहि गन जनु।
 मुनि मनसहु ते अगम तपहिं लायो मनु।34।

सकुचहिं बसन बिभूषन परसत जो बपु।
तेहिं सरीर हर हेतु अरंभेउ बड़ तपु।35।

पूजइ सिवहि समय तिहूँ करइ निमज्जन।
देखि प्रेमु ब्रतु नेमु सराहहिं सज्जन।36।

 नींद न भूख पियास सरिस निसि बासरू।
नयन नीरू मुख नाम पुलक तनु हियँ हरू।37।

कंद मूल फल असन, कबहुँ जल पवनहिं।
सूखे बेलके पात खात दिन गवनहि।38।

नाम अपरना भयउ परन अब परिहरे ।
नवल धवल कल कीरति सकल भुवन भरे।39।

देखि सराहहिं गिरिजहिं मुनिवरू मुनि बहु।
असनप सुन न दीख कबहुँ कहु।40।

काहूँ न देख्यौ, कहहिं यह तपु जोग फल फल चारि का।
 नहिं जानि जाइ न कहति चाहति काहि कुधर कुमारिका।
बटु बेष पेखन पेम पनु ब्रत नेम ससि सेखर गए।
मनसहिं समरपेउ आपु गिरिजहि बचन मृदु बोलत भए।5।

(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 5)