Last modified on 21 मार्च 2011, at 13:57

आत्मन्‌ के गाए कुछ गीत (गाना) / प्रकाश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:57, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> आत्मन्‌ अपने गायन मे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आत्मन्‌ अपने गायन में अनिपुण था
गायन में उसकी साँस रूँधती थी कंठ काँपता था
काँपकर गाता हुआ आत्मन्‌ अपने कंठ के जल में
स्वर-सहित सदेह डूब जाता था
जल के अन्तहीन सागर में ऊभ-चूभ डूबकर
लगभग अन्त समय में
जल के सजल अन्तर से उसकी
करुण कराह फूटती थी
               जल काँपता था !
तट पर दृश्यमान सबको
यह गाना सुन्दर लगता था !