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आत्मन्‌ के गाए कुछ गीत (गाना) / प्रकाश

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आत्मन्‌ अपने गायन में अनिपुण था
गायन में उसकी साँस रूँधती थी कंठ काँपता था
काँपकर गाता हुआ आत्मन्‌ अपने कंठ के जल में
स्वर-सहित सदेह डूब जाता था
जल के अन्तहीन सागर में ऊभ-चूभ डूबकर
लगभग अन्त समय में
जल के सजल अन्तर से उसकी
करुण कराह फूटती थी
               जल काँपता था !
तट पर दृश्यमान सबको
यह गाना सुन्दर लगता था !