Last modified on 21 मार्च 2011, at 14:32

इन्द्रकोप-गोवर्धन धारण (राग मलार) / तुलसीदास

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह=श्रीकृष्ण गीतावली / तुलसीदास }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इन्द्रकोप-गोवर्धन धारण (राग मलार)
 
ब्रज पर घन धमंड करि आए।

 अति अपमान बिचारि आपनो कोपि सुरेस पठाए।।

दमकति दुसह दसहुँ दिसि दामिनि, भयो तम गगन गँभीर।

गरजत घोर बारिधर धावत प्रेरित प्रबल समीर।2।

बार-बार पबिपात, उपल घन बरषत बूँद बिसाल।

राखहु राम कान्ह यहि अवसर, दुसह दसा भइ आइ।

नंद बिरोध कियो सुरपति सों, सो तुम्हरोइ बल पाइ।4।

सुनि हँसि उठ्यो नंद को नाहरू, लियो कर कुधर उठाइ।

तुलसिदास मघवा अपनी सो करि गयो गर्व गँवाइ।5।