Last modified on 21 मार्च 2011, at 15:26

शोभा-वर्णन (राग बिलावल) / तुलसीदास

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह=श्रीकृष्ण गीतावली / तुलसीदास }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


शोभा-वर्णन (राग बिलावल)

 ()

देखु सखी हरि बदन इंदु पर।

चिक्कन कुटिल अलक-अवली -छबि,

कहि न जाइ सोभा अनूप बर।1।

 बाल भुअंगिनि निकर मनहुँ मिलि

रही घेरि रस जानि सुधाकर।
 
तजि न सकहिं , नहिं करहिं पान, कहु,

 कारन कौन बिचारि डरहिं डर।2।

अरून बनज लोचन कपोल सुभ,

स्त्रुति मंडित कुंडल अति सुंदरं ।

मनहुँ सिंधु निज सुतहिं मनावन,

पठए जुगुल बसीठ बारिचर।3।

 नंदनँदन मुख की सुंदरता,

 कहि न सकत स्त्रुति सेष उमाबर।

 तुलसिदास त्रैलोक्यबिमोहन,
 
रूप कपट नर त्रिबिध सूल हर।4।

()

आजु उनीदे आए मुरारी।

आलसवंत सुभग लोचन सखि!

 छिन मूदत छिन देत उधारी।1।

मनहुँ इंदु पर खंजरीट द्वै,

कछुक अरून बिधि रचे सँवारी।

 कुटिल अलक जनु मार फंद कर,

 गहे सजग ह्वै रह्यो सँभारी।2।

 मनहूँ उड़न चाहत अति चंचल,

 पलक पंख छिन देत पसारी।

नासिक कीर, बचन पिक, सुनि करि,
 
संगति मनु गुनि रहत बिचारी।3।
 
रूचिर कपोल, चारू ,कुंडल बर,

 भ्रृकुटि सरासन की अनुहारी।

 परम चपल तेहि त्रास मनहुँ खग

प्रगटत दुरत न मानत हारी।4।

जदुपति मुख छबि कलप कोटि लगि

कहि न जाइ जाकें मुख चारी।

तुलसिदास जेहि निरखि ग्वालिनी

भजीं तात पति तनय बिसारी।5।