Last modified on 22 मार्च 2011, at 22:41

बिस्मिल-ए ग़ज़ल / ज़िया फतेहाबादी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:41, 22 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> कल शाम नागह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कल शाम नागहाँ सर ए राह मिल गई मुझे
फ़ितने क़दम-क़दम पे जगाती हुई ग़ज़ल
पूछा के आज पा ए सफ़र का है रुख़ किधर
बोली नज़र झुका के लज्जाती हुई ग़ज़ल :
कहती हूँ दिल की बात जो फैली है शहर में
पर्दा ही उठ गया है तो तुझ से छुपाऊँ क्या
महबूबा जिस की हूँ, मेरा महबूब है वही
सौदा है किस दयार का सर में, बताऊँ क्या
गरमी है बज़्म-ए शे'र में जिस की नवाओं से
मेरे खदंग ए नाज़ का बिस्मिल वही तो है
सरगर्दां कू ब कू हूँ मैं जिस की तलाश में
दिलबर मेरा वही , मेरी मंज़िल वही तो है