गोपी बिरह(राग मलार-5) / तुलसीदास
गोपी बिरह(राग मलार-5)
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सब मिलि साहस करिय सयानी ।
ब्रज आनियहिं मनाय पायँ परि कान्ह कूबरी रानी।1।
बसैं सुबास, सुपास होहिं सब फिरि गोकुल रजधानीं।
महरि महर जीवहिं सुख जीवन खुलहिं मोद मनि खानीं।2।
तजि अभिमान अनख अपनो हित कीजिय मुनिबर बानी।
देखिबो दरस दूसरेहुँ चोथेहुँ बड़ो लाभ, लघु हानी।3।
पावक परत निषिद्ध लकारी होति अनल जग जानी ।
तुलसी सो तिहुँ भुवन गायबी नंतसुवन सनमानी।4।
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कही है भली बात सब के मन मानी।
प्रिय सम प्रिय सनेह भाजन सखि प्रीति-रीति जग जानी।1।
भूषन भूति गरल परिहरि कै हर मूरति उर आनी।
मज्ज्न पान कियो कै सुरसरि कर्मनास जल छानी।2।
पूँछ सो प्रेम बिरोध सींग सों एहिं बिचार हित हानी।
कीजै कान्ह कूबरी सों नित नेह करम मन बानी।3।
तुलसी तजिय कुचालि आलि! अब, सुधरै सबइ नसानी।
आगें करि मधुकर मथुरा कहँ सोधिय सुदिन सयानी।4।