कुछ अलसाये
कुछ कुम्हलाये
आम्रगन्ध भीजे, बौराये
काटे ना 
कटते ये पल छिन
निठुर बड़े हैं गर्मी के दिन
धूप-छाँव 
अँगना में खेलें
कोमल कलियाँ पावक झेलें
उन्नींदी 
अँखियां विहगों की
पात-पात में झपकी ले लें
रात बिताई 
घड़ियां गिन-गिन
बीतें ना कुन्दन से ये दिन
मुर्झाया 
धरती का आनन
झुलस गये वन उपवन कानन
क्षीण हुई 
नदिया की धारा
लहर- लहर 
में उठता क्रन्दन
कब लौटेगा बैरी सावन
अगन लगायें गर्मी के दिन।
सुलग- सुलग 
अधरों से झरतीं
विरहन के गीतों की कड़ियाँ
तारों से पूछें दो नयना
रूठ गई 
क्यों नींद की परियाँ
भरी दोपहरी 
सिहरे तन-मन
विरहन की पीड़ा से ये दिन