भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हसरत ए दीद मुसीबत ही सही / ज़िया फतेहाबादी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:53, 27 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> हसरत ए दी…)
हसरत ए दीद मुसीबत ही सही ।
हमें ग़म खाने की आदत ही सही ।
दश्त-ओ सहरा कोई दोज़ख तो नहीं,
तेरा कूचा मेरी जन्नत ही सही ।
बेअसर मेरी दुआएँ क्यूँ हों,
लादवा दर्द-ए मुहब्बत ही सही ।
ज़िन्दगी मौत से बेहतर है मगर,
दो घड़ी के लिए राहत ही सही ।
अमन से बैर नहीं रखते हम,
शोरिशें दाख़िल-ए फ़ितरत ही सही ।
सर कटाने की मगर बात कहाँ,
सर में सौदा-ए शहादत ही सही ।
देख कर इश्क ’ज़िया’ बढ़ता है,
हुस्न तस्वीर-ए नज़ाकत ही सही ।