भूखों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से बरसती हो रोटियाँ
और भरे हों गोदाम
नंगों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से टपकती हो लंगोटियाँ
और झरता हो कपास
मूर्खों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से निकलती हों गोलियाँ
और मचता हो आतंक!
भूखों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से बरसती हो रोटियाँ
और भरे हों गोदाम
नंगों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से टपकती हो लंगोटियाँ
और झरता हो कपास
मूर्खों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से निकलती हों गोलियाँ
और मचता हो आतंक!