71 से 80 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3
पद 75 से 76 तक
(75),
खोटो खरो रावरो सौं, रसरेसों झूठ क्यों कहौंगो,
जानो सब ही के मनकी।
करम-बचन-हिये, कहौं न कपट किये , ऐसी हठ जैसी गाँठि ,
पानी परे सनकी।1।
दूसरो, भरोसो नाहिं बासना उपासनाकी, बासव , बिरंचि,
सुर-नर-मुनिगनकी।
स्वारथ के साथी मेरे, हाथी स्वान लेवा देई , काहू तो न पीर ,
रघुबीर!दीन जनकी।2।
साँप-सभा साबर लबार भये देव दिब्य, दुसह साँसति कीजै,
आगे ही या तनकी।
साँचे परौं , पाऊँ पान, पंचमें पन प्रमान, तुलसी चातक आस,
राम स्यामघनकी।3।
(76)
खेाटेा खरो रावरो हौं, रावरी सौं, रावरेसों झूठ क्यों कहौंगो,
जानो सब ही के मनकी।
करम-बचन-हिये, कहौं न कपट किये, ऐसी हठ जैसी गाँठि,
पानी परे सनकी।।
दूसरो , भरोसो नहिं बासना उपासनाकी, बासव, बिरंचि,
सुर-नर-मुनिगनकी।।
स्वारथके साथी मेरे, हाथी स्वान लेवा देई, काहू तो न पीर,
रघुबीर!दीन जनकी।।
साँप-सभा साबर लबार भये देव दिब्य, दुसह साँसति कीजै,
आगे ही या तनकी।
साँचे परौं, पाऊँ पान, पंचमें पन प्रमान,तुलसी चातक आस
राम स्यामघन की।।