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तुम होते तो / पूर्णिमा वर्मन

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जो सपना कल रात संजोया

आज सुबह वो कितना खोया

तुम होते तो...


कुछ हँसते

कुछ बातें करते

कुछ सुनते कुछ अपनी कहते

कल जाने हम और कहाँ हों

दुनिया की कश्ती में बैठे

ना जाने किस ओर रवां हों


आज शाम

कितनी बेबस थी

तुम होते तो...

कुछ लड़ते कुछ गप्पें करते

ये फुर्सत पल कितने दिन के

कट जाते यों हँसते खिलते

तुम होते तो...


तुम होते तो

साथ बैठते

मन खिड़की के दर खुल जाते

खुली हवा कुछ अंदर आती

उमस भरे मन को

थोड़ी राहत मिल जाती


क्या मालूम कि

तुम कैसे हो

बहुत व्यस्त हो

या मेरी तरहा ही गुमसुम

घुटे-घुटे हो कुछ तो बोलो

कोई ख़बर दो

हाथ थाम कर

साथ बैठते

तो आँखों की नमी हमारे

सूखे मन को तर कर जाती

जीवन पर चिकटी परतें भी

धुल कर चमक ख़ुशी ले आतीं

तुम होते तो...