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आज अचानक / पूर्णिमा वर्मन

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आज अचानक सड़कों पर दंगा-सा है

साथ हमारे मौसम बेढंगा-सा है


तेज़ हवाऎँ बहती हैं टक्कर दे कर

तूफ़ानों ने रोका है चक्कर दे कर

दॄढ निश्चय फिर भी कंचनजंघा-सा है

झरनों का स्वर मंगलमय गंगा-सा है


निकल पड़े हैं दो दीवाने यों मिलकर

सावन में ज्यों इंद्रधनुष हो धरती पर

उड़ता बादल अंबर में झंडा-सा है

पत्तों पर ठहरा पानी ठंडा-सा है


जान हवाओं में भरती हैं आवाज़ें

दौड़ रही घाटी के ऊपर बरसातें

हरियाली पर नया रंग रंगा-सा है

दूर हवा में एक चित्र टंगा-सा है


भीगी शाम बड़ी दिलवाली लगती है

चमकती बिजली दीवाली-सी लगती है

बारिश का यह रूप नया चंगा-सा है

खट्टा- मीठा दिल में कुछ पंगा-सा है ।