Last modified on 1 अप्रैल 2011, at 01:02

शिविर की शर्वरी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:02, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शिविर की शर्वरी
हिंस्र पशुओं भरी।

ऐसी दशा विश्व की विमल लोचनों
देखी, जगा त्रास, हृदय संकोचनों
कांपा कि नाची निराशा दिगम्बरी।

मातः, किरण हाथ प्रातः बढ़ाया
कि भय के हृदय से पकड़कर छुड़ाया,
चपलता पर मिली अपल थल की तरी।