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आंगन के नाम / पूर्णिमा वर्मन

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घर आँगन द्वार डगर यादें अभिराम

साँकल सी बजती रहीं रोक-रोक काम


मौसम के साथ बही चंचल पुरवाई

डालों पर सजी रही कोमल अमराई

धुऎँ में खोने लगा छोटा-सा गाँव

रंगोली डाल गयी अम्बर में शाम


सूरज के साथ थमी अलग-अलग हलचल

हल,पक्षी, रहट, बैल सबके कोलाहल

नीरव का आमंत्रण जीवन के धाम

दिये जले आलों में कोहबर विश्राम


रुकी हुई बारिश में कहीं-कहीं दिखता है

आसमान चुपके से तारों में लिखता है

चांदनी से धूप तलक सावन के नाम

गमले भर फूल आज आँगन के नाम