भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के / अख़्तर नाज़्मी
Kavita Kosh से
Kartikey agarwaal khalish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:03, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके
वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके
ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था
कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके
इक तंज़ है कलियों का तबस्सुम भी मगर क्यों
मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके
वैसे तो इरादा नहीं तौबा शिकनी का
लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके
क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके
दरवाज़ों के शीशे न बदलवाइए नज़मी
लोगों ने अभी हाथ से पत्थर नहीं फेंके