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पूरा दुःख और आधा चाँद / परवीन शाकिर
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पूरा दुःख और आधा चाँद
हिज्र की शब् और ऐसा चाँद
किस मकतल से गुज़रा होगा
ऐसा सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तनहा चाँद
मेरे मुहँ को किस हैरत से
देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चाँद
इतने रोशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा
तूने किसका सोचा चाँद
बरगद की एक शाख़ हटाकर
जाने किसको झाँका चाँद
रात के शाने पर सर रक्खे
देख रहा है सपना चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद