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फीका चाँद/जावेद अख़्तर
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सुखी टहनी, तन्हा चिड़िया, फीका चाँद
आँखों के सहरा<ref>विराना</ref> में एक नमी का चाँद
उस माथे को चूमे कितने दिन बीते
जिस माथे की खातिर था एक टिका चाँद
पहले तू लगती थी कितनी बेगाना
कितना मुब्हम<ref>धुंधला</ref> होता है पहली का चाँद
कम कैसे हो इन खुशियों से तेरा गम
लहरों में कब बहता है नदी का चाँद
आओ अब हम इसके भी टुकड़े कर ले
ढाका रावलपिंडी और दिल्ली का चाँद
शब्दार्थ
<references/>