Last modified on 1 अप्रैल 2011, at 23:26

चांद की सैर का ख्वाब / रमा द्विवेदी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:26, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाँद पर रहने का इन्तज़ाम करने लगे हैं लोग
इक्कीसवीं सदी में मानव चाँद पर-
सैर-सपाटे के लिए जायेगा,
सारे काम यंत्र करेंगे,
मानो मानव यंत्रमय हो जायेगा।

न संगिनी की खटपट,
न रोटी कमाने का चक्कर,
चक्कर लगाते-लगाते वह,
आज की राजनीति का अधिवेशन,
मंगल पर जा करेगा,
चुनावी रणनीति वहीं पर तै करेगा।

वहाँ पर बैठे-बैठे वह,
सब कुछ हजम कर जायेगा,
और तो और जनता के
आक्रोश से भी बच जायेगा।

कई क्लोनिंग जीव वहाँ नज़र आयेंगे
इस विचित्र माइक्रो दुनिया में
कोई हिटलर, कोई लादेन
कोई सफेदपोश रावण
जो वहाँ से भी सीता का-
हरण कर ले जायेगा ।

सबसे पहले सफेदपोश जीव ही
वहाँ आवास बनायेगा
चक्कर काटने में हैं वे निपुण
इसलिए चाँद की सैर करवाने का
ख़्वाब जनता को दिखायेंगे
जनता है बावरी
ऐसे नेता को ही जितायेंगे ॥