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अछूत का इनार-1 / मुसाफ़िर बैठा

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जब धनुखी हलवाई का इनार था
केवल टोले में और
सिर्फ और सिर्फ इनार था
पीने के पानी का इकलौता स्रोत
तो दादी उसी इनार से
पानी लाया करती थी
और धोबी घर की बाकी औरतें भी

और घरों की जनानियां भी
पानी भरती थीं वहां
पर धोबनियों से सुविधाजनक छूत
बरता करती थीं
ये गैर धोबी गैर दलित शूद्र स्त्रिायां
जबकि खुद भी अस्पृश्य जात थीं ये
सवर्णों के चैखटे में

अलबत्ता उनके बदन पर
जो धवल साड़ी लिपटी होती थीं
उनमें धोबीघर से धुलकर भी
रत्तीभर छूत नहीं चिपकती थी

पर इन गैर सवर्ण स्पृश्यों की
बाल्टी की उगहन के साथ
नहीं गिर सकती थी
धोबनियों की बाल्टी की डोर
साथ भरे पानी को
छूत जो लग जाती

जाने कैसे
संग साथ रहे पानी का
अलग अलग डोर से
बंधकर खिंच आने पर
जात स्वभाव बदल जाता था