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गाली / मुसाफ़िर बैठा

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जब हम किसी को
दे रहे होते हैं गाली
तो केवल और केवल
उसे ही पीड़ा पहुंचाने का
ध्येय रहता है हमारा
और अपना मन हल्का करने का
जबकि हम अपनी गाली
बेशक महज लक्षित पर ही
नहीं रख पाते केन्द्रित

गेहंू के साथ जैसे
पिस जाता है घुन
उसी तरह
बकी गाली का
आयास अनायास लक्षित के
अगल-बगल आस-पड़ोस सगे-संबंधी
यहां तक कि कहीं अगम अगोचर
और दूर बहुत दूर तलक भी
पसर जाता है उसका संक्रामक प्रभाव
और करता है कोई भरता है कोई
जबकि औरों ने हमारा
कुछ नहीं बिगाड़ा होता
जैसे
मां-बहन बेटा-बेटी साला-साली रिश्ते-नातों की
अंतड़ी-छेद गालियां देकर हम
कुछ ऐसा ही कर रहे होते हैं

गालिबन
गालियों का स्वभाव ही है ऐसा
कि वे उद्दाम उच्छृंखल होती हैं
अपने प्रभाव की तरह और
अपने को किसी ऊंच-नीच, सही-गलत के
खांचे में बंधकर देखे जाने में
नहीं रखतीं वे हरगिज यकीन ।

2007