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कोसी अँचल में बाढ़ (2008)-6 / मुसाफ़िर बैठा
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बाढ़ के हाहाकार ने जहां
लाखों के करेजे को जराया
वहीं कइयों के लेखे यह
मौज मस्ती और पिकनिक का
उपादान बन आया
एक ओर जहां अपनी जिन्दगी का पल पल
घर खेत खलिहान को ही अर्पण कर आए लोग
जल प्रलय की मार से आहत हो घर बार छोड़
कहीं भी बेतहाशा जान बचाने को
भाग लेने को मजबूर हो रहे थे
वहीं कतिपय लोग बाढ़ क्षेत्रा में पहुंच
नौका विहार का आनन्द लेने का
एक सुनहरा मौका आया समझ
बाढ़ के पानी में नाव की अठखेल सवारी कर
अपने तन मन में रोमांच भर रहे थे
गोया
ये खिलंदड़े लोग जाने अनजाने
मिथिलांचल के इस कहावत को
अपनी क्रीड़ा-अन्ध उतावली में जीवित कर रहे थे-
चिड़ई के जान जाए लइरका के खिलौना
29.9.08