भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महाकाव्य / वंदना केंगरानी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:40, 4 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वंदना केंगरानी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं महाकाव्य…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं महाकाव्य लिख रही हूँ
सैंडिल पर पालिश करते हुए
नहाते हुए
बस पकड़ते हुए
बॉस की डाँट खाते हुए
रोज़ शाम दिन—भर की थकान
मिटाने का बेवजह उपक्रम करते
चाय पीते
तुम्हें याद करते हुए
महाकाव्य लिख रही हूँ !