भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी-सी मृत्यु के बाद / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:57, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण
मेरे लिए अकस्मात था
हाथों का जुड़ना
और सिरों का झुकना भी ।
इतना ज़रूर था
कि यह सब तहेदिल से था
मैंने पहली बार ख़ुद को
महज़
इन्सानों के बीच पाया था ।