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मौत ने अपनी / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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मौत ने अपनी तरफ़ जब डोर पूरी खींच ली

ज़िंदगी उस मोड़ पर तूने मुझे आवाज़ दी


जिसके मंसूबों के आगे मेघ भी बौने लगे

क्या कभी देखी भी है उस शख्स़ की बेचारगी


चन्द घड़ियों के लिये बगिया में बिखरी थी बहार

उम्र भर हर रोज़ पतझर ने उतारी आरती


जिसके दिल में दर्द, आँखों में नमी, लब पर लिहाज़

गीत है हर बोल उसका, हर सुखन है शायरी


उस परिन्दे को उड़ाना चाहते हो तुम पराग

रास आई जिसको पिंजरे की अँधेरी त्रासदी