भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़ौस ए कुज़ाह / ज़िया फ़तेहाबादी
Kavita Kosh से
Ravinder Kumar Soni (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> मेहर ए …)
मेहर ए रोशन की आख़िरी किरणें
रक़स करती हैं काले बादल में
उन शुआओं से रंग गिरते हैं
और दोश ए हवा पे फिरते हैं
और बनाते हैं आसमाँ पे कमाँ
रंगज़ा, रंगबार ओ रंगअफ़शाँ
उस कमाँ से वो तीर आते हैं
जो नज़र की ख़लिश मिटाते हैं