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सार्थक एक लम्हा / शैलप्रिया

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आज
जीना बहुत कठिन है।
लड़ना भी मुश्किल अपने-आप से ।
इच्छाएँ छलनी हो जाती हैं
और तनाव के ताबूत में बंद ।
वैसे,
इस पसरते शहर में
कैक्टस के ढेर सारे पौधे
उग आए हैं
जंगल-झाड़ की तरह ।


इन वक्रताओं से घिरी मैं
जब देखती हूँ तुम्हें,
उग जाता है
कैक्टस के बीच एक गुलाब
और
ज़िंदगी का वह लम्हा
सार्थक हो जाता है ।