भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं बना विद्याधर / पुरुषोत्तम अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:58, 7 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम अग्रवाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> पुरानी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुरानी क़िताब उलटते पलटते
पड़ी एकाएक निगाह
अरे !
यह तो पंख है
उसी सुनहरी तितली का
जिसके पीछे बरसों दौड़ा किया
मैं

एक पल पकड़ी ही गयी तितली

आह !
कैसी थरथराती छुअन
कैसे चितकबरे धब्बे सुनहरे पंख पर
जैसे धरती से फूटा इन्द्रधनुष

क़िताब कापी के पन्नों के बीच दबा
तितली का पंख विद्या देता है
बताया गया था मुझे

पंख नुचा तितली मरी
मैं बना विद्याधर !