नींव का आधार यह जमीं/ रमा द्विवेदी
तुम बनाओगे महल या बनाओ झोपड़ी,
नींव का आधार है यह जमीं,यह जमीं।
जन्म से मिलती है हमको यह जमीं,यह जमीं,
लोटकर इसकी गोद में हमको जवानी है मिली,
आया बुढ़ापा और फिर मृत्यु में भी साथ यह,
मृत तन को भी देती है आश्रय यह जमीं,यह जमीं।
ज़ुल्म हो, आतंक हो बस यह जमीं ही सहती है,
सदियों के इतिहास को भी यह जमीं ही कहती है,
दर्द से फट जाता है जब कभी इसका कलेजा,
खुद में समा लेती है सबको, यह जमीं,यह जमीं।
इस जमीं के बिना अस्तित्व जीवों का नहीं,
इसके बिना जीवन नहीं,जीवन की कल्पना नहीं,
हर सांस में शामिल है ये,ज़िन्दगी के बाद भी,
मृत -ज़िन्दगी का कफ़न भी है यह जमीं,यह जमीं।
आओ मिल कर कुछ करें इस जमीं के लिए,
तरु-सरोवर को बचाएं,हरित वसुधा के लिए,
स्वर्ग से बेहतर बनाएं रह न जाए कुछ कमीं,
देंगे नई पीढी को हम सुन्दर जमीं सुन्दर जमीं।