भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समझ लेना तुम /रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
Ramadwivedi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 10 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> ये फिज़ायें गुनगुनाती हरदम, …)
ये फिज़ायें गुनगुनाती हरदम, यह समझ लेना तुम।
ये वादियाँ तलाशती हमदम,यह समझ लेना तुम ॥
बहारें आयेंगी गर ,पतझड़ भी जरूर आयेगा,
यही चमन का नियम ,यह समझ लेना तुम॥
हवाएं धीरे से बहतीं , कभी तूफ़ां की तरह,
समन्दर में भी रहती है अगन,यह समझ लेना तुम॥
वफ़ा के वादे से जब चाँद मुकर जाता है,
वफ़ा का सूर्य मुस्कराता हरदम,यह समझ लेना तुम॥
जहां में कौन है ऐसा जिसे कोई ग़म न हो,
खुशी अरु ग़म में अनुपात बहुत कम,यह समझ लेना तुम॥
सभी को इक दिन यमराज का मेहमां बनना है,
कभी न भरना अमरता का दम,यह समझ लेना तुम॥
जमीं औ आसमां मिलते दिखाई देते क्षितिज पर,
मिलन के भ्रम में भी सरगम,यह समझ लेना तुम॥