भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दृढ़ आधार / मीना अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:03, 12 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीना अग्रवाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मन मेरे तू क्यों…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन मेरे तू क्यों रहता है इतना बैचैन !
क्या तुझे पता नहीं कि बचपन से अब तक
इसी तरह ख़ामोश
रहना पड़ा है तुझे !
अब तो अपनी आदत सुधार
अब तो अपने अनमोल समय को
इतना कुछ सोचने में मत कर बेकार,
आदत डाल सब कुछ सहने की
और विरोध में कुछ भी न कहने की
व्यर्थ भावों में न बहने की ऐसा करने पर
तुझे अवसर मिलेगा
अपना काम करने का
अपने अमूल्य समय को बचाने का
क्योंकि सोचने में मन उलझता ही जाता है
उसे विचारों के चक्रव्यूह से बाहर निकलने का
अवसर ही नहीं मिलता !
जिस समय
बहुत कुछ रचनात्मक
किया जा सकता है वह समय
व्यर्थ की उलझनों में ही चुक जाता है,
इसलिए मन मेरे
तू स्वयं को पहचान दे मजबूत आधार
जिससे कर पाऊँ कुछ रचनात्मक
कुछ ऐसा जो बन सके
उदाहरण
और मेरे बाद भी सभी उसे दोहराएँ !