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एक स्त्री का लिखना / प्रमोद कुमार

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उसे सादे काग़ज़ कम
पहले से लिखे-लिखाए अधिक दिए गए ,

पहले अभ्यास में
उसे दो अक्षरों का पति दिया गया
जिसमें बहुत कम कुछ जोड़ा-घटाया जा सकता था,

यह तो कलम का अपना मिज़ाज था
और उसकी अँगुलियों का उत्साह
कि जोड़ने के लिए दिए गए
घर के दो अक्षर भी
उसे कम़ लगे

उसे दोहरी मेहनत पड़ी
वह पहले से लिखे को मिटाती
फिर अपना लिखने की
कुछ जगह बनाती,

मिटाने-बनाने के ज़ोर में
कहीं-कहीं तो काग़ज़ सीमा के पार चला जाता
कहीं एकदम पतला अगोचर हो जाता
कहीं एकदम खुरदरा
उस पर स्याही ऐसी पसरती
कि अनेक शब्द दूसरे लोक के लगने लगते
और कहीं तो अनलिखा भी
सबको आर-पार दिख जाता ।