भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बजा हथौड़ा, ठन-ठन-ठन ! / नचिकेता

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:39, 21 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नचिकेता }} Category:गीत बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन मिटके रहेगा अब ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन

मिटके रहेगा अब शोषण


यह नकली आज़ादी भी

ख़ून हमारा पीती है

औ' सरमायेदारों की

बस्ती में ही जीती है

हंसिये की है भौंह तनी

मिटके रहेगा क्रूर दमन

बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन

मिटके रहेगा अब शोषण


सत्ताधारी के घर में

अब न मनेगी दीवाली

देती है संदेश हमें

उगते सूरज की लाली

तूफ़ानों ने ही आख़िर

दिया हमें फिर आमंत्रण

बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन

मिटके रहेगा अब शोषण


हर घर की दीवारों की

सुलगी आज निगाहें हैं

हक़ की बड़ी लड़ाई को

फड़क रही फिर बाहें हैं

दशों दिशाओं में गूँजी

हथियारों की खन-खन-खन !

बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन !

मिटके रहेगा अब शोषण !


(1977 में रचित)