Last modified on 15 अप्रैल 2011, at 13:46

चढ़ता हुआ दरिया भी उतर जायेगा इक दिन / मोहम्मद इरशाद

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:46, 15 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मोहम्मद इरशाद |संग्रह= ज़िन्दगी ख़ामोश कहाँ / म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


चढ़ता हुआ दरिया भी उतर जायेगा इक दिन
और तेरा मुकद्दर भी सँवर जायेगा इक दिन

घर जल गया तो तूने ज़बाँ से ना कुछ कहा
ख़ामोश रहना तेरा असर लायेगा इक दिन

अब छोड़ कर जायेगा कहाँ अपना ही साया
तन्हा रहा तो ख़ुदा से भी डर जायेगा इक दिन

तू ना सँवार बार-बार अपने गुरूर को
ये आईना भी टूट बिखर जायेगा इक दिन

तुझ को जब देखने का शऊर आयेगा ‘इरशाद’
हर सिम्त बस ख़ुदा ही नज़र आयेगा इक दिन