भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मै ना भूलूँगा / संतोषानन्द

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:55, 15 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोषानन्द }} {{KKCatGeet}} <poem> मै न भूलूँगा मै न भूलूँगी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मै न भूलूँगा
मै न भूलूँगी
इन रस्मों को, इन क़समों को, इन रिश्ते-नातों को

चलो जग भूलें, ख्यालों मे झूलें
बहारो मे डोले, सितारों को छू लें
आ तेरी मै माँग सँवारूँ तू दुल्हन बन जाए
माँग से जो दुल्हन का रिश्ता मै न भूलूँगी...

समय की धारा मे उमर बह जानी है
जो घड़ी जी लेंगे वही रह जानी है
मै बन जाऊँ साँस आख़िरी, तू जीवन बन जाए
जीवन से साँसो का रिश्ता मै न भूलूँगी

गगन बनकर झूमे, पवन बनकर झूमे
चलो हम राह मोड़ें, कभी न संग छोड़ें
तरस चख जाना है, नज़र चख जाना है
कहीं पे बस जाएँगे, यह दिन कट जाएँगे
अरे क्या बात चली, वो देखो रात ढली
यह बातें चलती रहें, यह रातें ढलती रहें

मै न भूलूँगा, मै न भूलूँगी...



फ़िल्म : रोटी, कपड़ा और मकान (1974)