भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी पत्नी बोली ‘म्याऊँ’ / विमल कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:02, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)
वह मेरी खिड़की के सामने
धीरे से बोली-- ‘म्याऊं’
मैं उस समय सोया हुआ था
मुझे लगा मेरी नींद में
आ गई है कोई बिल्ली
उसकी लम्बी छलांग से
टूट गयी मेरी नींद
बाहर गया
जब मैं उसका पीछा करता हुआ
तो देखा
मेरी पत्नी थी
मुझे देख मुस्कराती हुई
फिर वह बरसने लगी
मेघ की तरह
मेरे कमरे में
मैं पहली बार भीगा था
कोई सपना जो देखा था
वर्षों पहले
जैसे वह सच हुआ था
मैंने उसे कई बार छुआ था
पर आज जो कुछ मेरे मन में हुआ
वह कभी नहीं हुआ था