भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मीठा प्रेम / विमल कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:09, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)
वे कल्पना में ही प्रेम करना चाहते हैं
नहीं करना चाहते यथार्थ में
यथार्थ में प्रेम
बहुत तीखा है
और कल्पना का प्रेम ?
मत पूछो कितना मीठा है
कल्पना और यथार्थ को
एक-दूसरे में मिलाकर
सुन्दर जीवन जीना
अभी उन्होंने नहीं सीखा है !