Last modified on 17 अप्रैल 2011, at 04:27

लौटा रहा हूँ / विमल कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:27, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सारी समस्या
तुम्हें चाहने से खड़ी हुई है
मैं अब अपनी चाह को लौटा रहा हूँ।

तुम तक पहुँचने के लिए
बनाई थी मैंने एक राह
अब मैं उस राह को लौटा रहा हूँ ।

मैं जानता हूँ
तुम्हें हो रही होगी
बहुत तकलीफ़
सुनकर वह कराह
अब मैं उस कराह को
अपने सीने में लौटा रहा हूँ ।

पर यह सच है
कि मैं जितना तुमसे दूर जा रहा हूँ
उतना ही क़रीब पा रहा हूँ ।