मस्तिष्क की विराट्
शून्यता को चीरकर
विचार
जन्म पाते हैं।
शब्दों की देहरी
चढते-चढते
संवादों से
मुठभेड कर
दम तोड जाते हैं।
और फिर
दिनदहाडे
एक कविता की
मौत हो जाती है।
मस्तिष्क की विराट्
शून्यता को चीरकर
विचार
जन्म पाते हैं।
शब्दों की देहरी
चढते-चढते
संवादों से
मुठभेड कर
दम तोड जाते हैं।
और फिर
दिनदहाडे
एक कविता की
मौत हो जाती है।