भाषा के नए-नए
खाकों में ढलकर
टूटे शब्द
संकेतों / प्रतीकों
के नए-नए
अर्थ में बदलकर
भावना के सागर में
डूबते मन को
टूटते जन को
कुछ पल / क्षण को
ग्रीष्म स्नान
की
ताजगी देकर
रेतीली हवाओं में
लू बनकर
उड जाते हैं।
और ! फिर
कल्पना के कारखाने में
भाषा के सज्जाकार मस्तिष्क
शब्दों को जोड-तोडकर
छन्दों को तरोड-मरोडकर
लग जाते हैं
एक नई कविता की
तलाश में।