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हम / सुरेश सेन निशांत
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हम शहद बाँटते हैं
मधुमक्खियों की तरह
हज़ारों मील लम्बी और कठिन है
हमारे जीवन की भी यात्राएँ
उन्हीं की तरह
रहते हैं हम अपने काम में मगन
उन्हीं की तरह धरती के
एक-एक पुल की गंध और रस का
है पता हमें
वाकिफ़ हैं हम
धरती की नस-नस से
आपके मन और देह को रिझाता हुआ
आपकी जिव्हा पे
हमारी ही मेहनत का
है ये मीठा स्वाद
ध्यान रहे हम
डंक भी मारते हैं
ज़हर बुझा डंक
कोई यूँ ही हमारे छत्ते पे
मारे अगर पत्थर
वैसे हम मधुमक्खियाँ भर नहीं