मुड़ा-तुड़ा नोट / सुरेश सेन निशांत
वह मुड़ा-तुड़ा नोट
एक रुपये का
अब भी है
मेरे बचपन की
स्मृतियों की जेब में सुरक्षित ।
वह मुड़ा-तुड़ा नोट
जिसमें गन्ध थी रची-बसी
माँ के पसीने की
जिसमें क्षमता थी इतनी
लड़ सकती थी माँ
अपने बुरे दिनों से ।
मेरे ज़िद करने पर जिसे
अपने दुपट्टे की गाँठ से
खोल दिया था माँ ने
उत्साह से लबालब
ख़ुशी के घोड़े पे सवार
सरपट
निकल पड़ा था
गाँव के मेले में मैं
इतना बड़ा नोट
इतना छोटा मेला
इतना थोड़ा था सामान
दुकानों के मेले की
पूरा मेला घूम-घाम कर
लौट आया मैं
जेब में सुरक्षित लिए
मुड़ा-तुड़ा नोट ।
घर में ख़ूब हँसी थी बड़ी बहिनें
चुपके से रोई थी माँ
अब दूर है माँ
उनकी हँसी और उदासी
दूर है ।
बहुत पास है मेरे
और मुड़ा-तुड़ा नोट
एक रुपये का
अब भी
मेरे बचपन की
स्मृतियों की जेब में सुरक्षित