जब तू मुझको छोड़ गया था
रस्ता-रस्ता मैं भटका था
हर जानिब से पत्थर बरसे
मैंने तेरा नाम लिखा था
कल इक पागल के मुँह से भी
मैंने तेरा नाम सुना था
तेरी यादों के सावन में
मेरा ही दामन भीगा था
उस से ए ‘इरशाद’ मिला क्यूँ
अच्छा था जब मैं तन्हा था